दिल्ली हाईकोर्ट ने CISF सब-इंस्पेक्टर की सजा बरकरार रखी, महिला सहकर्मी को अश्लील मैसेज भेजना अस्वीकार्य
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के एक सब-इंस्पेक्टर (कार्यकारी) के खिलाफ विभागीय कार्रवाई को सही ठहराते हुए कहा कि एक विवाहित वर्दीधारी अधिकारी द्वारा किसी अन्य महिला अधिकारी को अश्लील संदेश भेजना अस्वीकार्य और अनुशासनहीनता का उदाहरण है।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस विमल कुमार यादव की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए अधिकारी की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि वर्दीधारी सेवाओं में इस तरह का आचरण “अशोभनीय और अस्वीकार्य” है।
क्या था मामला
उक्त CISF सब-इंस्पेक्टर पर आरोप था कि उसने अपनी यूनिट की एक महिला अधिकारी को व्हाट्सएप पर अश्लील मैसेज भेजे और मोबाइल कॉल के जरिए परेशान किया। शिकायत के बाद विभागीय जांच शुरू की गई, जिसमें CISF सब-इंस्पेक्टर को दोषी पाया गया।
जांच समिति की सिफारिश पर CISF सब-इंस्पेक्टर को दो साल के लिए वेतन में कटौती की सजा दी गई, साथ ही यह भी निर्देश दिया गया कि इस अवधि के दौरान वह कोई वेतन वृद्धि अर्जित नहीं करेगा और यह कटौती भविष्य की वेतन वृद्धि को भी प्रभावित करेगी।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
कोर्ट ने कहा —
“याचिकाकर्ता वर्दीधारी सेवा का सदस्य है और विवाहित है। उसे किसी अन्य महिला के साथ अनुचित संबंध रखने या अश्लील संदेश भेजने का कोई अधिकार नहीं है। यह आचरण एक वर्दीधारी अधिकारी के लिए अशोभनीय है।”
खंडपीठ ने आगे कहा कि विभागीय जांच प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए की गई थी और अधिकारी(CISF सब-इंस्पेक्टर) को अपने बचाव का पूरा अवसर दिया गया था।
शिकायत और जांच की प्रक्रिया
महिला अधिकारी ने शिकायत में कहा था कि आरोपी अधिकारी (CISF सब-इंस्पेक्टर) सामान्य बातचीत में “आई लव यू”, “डार्लिंग” जैसे शब्दों का प्रयोग करता था और दुर्भावनापूर्ण इरादे से उसके घर पहुंचने की कोशिश करता था।
शिकायत के बाद CISF ने जांच समिति गठित की, जिसने साक्ष्यों के आधार पर आरोप साबित पाया।
पुनर्विचार प्राधिकरण ने भी यह कहते हुए अधिकारी(CISF सब-इंस्पेक्टर) की अपील खारिज कर दी कि उसका बचाव “अस्पष्ट और असार” था तथा किसी ठोस प्रमाण पर आधारित नहीं था।
हाईकोर्ट का निष्कर्ष
कोर्ट ने कहा कि जांच प्रक्रिया में कोई अनियमितता नहीं पाई गई। सभी साक्ष्य उचित रूप से विचार किए गए और किसी बाहरी प्रभाव का कोई संकेत नहीं मिला।
“जांच कार्यवाही और निर्णय दोनों ही निष्पक्ष व पारदर्शी रहे हैं,” कोर्ट ने कहा।
यह फैसला केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (CAPFs) और वर्दीधारी सेवाओं के अनुशासन व आचरण को लेकर एक महत्वपूर्ण संदेश देता है —
वर्दी में रहते हुए अधिकारी या जवान का निजी आचरण भी बल की गरिमा और अनुशासन के अनुरूप होना चाहिए।

