CAPF कैडर अफसरों की ‘सुप्रीम’ जीत: 20,000 अधिकारियों को मिली बड़ी राहत, सरकार की रिव्यू पिटीशन खारिज
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (CAPFs) के लगभग 20,000 कैडर अधिकारियों को सर्वोच्च न्यायालय से एक ऐतिहासिक जीत मिली है। केंद्र सरकार की रिव्यू पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट ने 28 अक्तूबर 2025 को खारिज कर दिया, जिससे सरकार को तगड़ा झटका लगा है। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने यह निर्णय सुनाते हुए मई 2025 के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कैडर अधिकारियों को “संगठित समूह-ए सेवा (OGAS)” का दर्जा देने और उसके तहत सभी लाभ लागू करने का निर्देश दिया गया था।
🔹 पृष्ठभूमि: सुप्रीम कोर्ट का मई 2025 का ऐतिहासिक फैसला
मई में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों — जैसे CRPF, BSF, CISF, ITBP, और SSB — में “संगठित समूह-ए सेवा पैटर्न” लागू किया जाए। कोर्ट ने कहा था कि यह व्यवस्था केवल एनएफएफयू (Non Functional Financial Upgradation) तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि सभी प्रशासनिक और पदोन्नति से जुड़े मामलों में भी लागू होनी चाहिए।
इसके साथ ही केंद्र सरकार को छह माह की समय-सीमा दी गई थी, जिसके भीतर कैडर रिव्यू पूरा करने और अधिकारियों को समान लाभ देने को कहा गया था।
🔹 रिव्यू पिटीशन खारिज होने के मायने
केंद्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल की थी, जिसे अब अदालत ने खारिज कर दिया है।
इससे कैडर अफसरों को उम्मीद की एक नई किरण मिली है। हालांकि, कई अफसरों को अभी भी आशंका है कि सरकार फैसले के अनुपालन में देरी कर सकती है — जैसा कि पुरानी पेंशन योजना (OPS) केस में देखने को मिला था।
🔹 वर्षों से लंबित पदोन्नति और कैडर रिव्यू
बीएसएफ और सीआरपीएफ में 2016 से कैडर रिव्यू नहीं हुआ है।
सहायक कमांडेंट (AC) स्तर के अधिकारी, जिन्हें 5-7 वर्ष में पदोन्नति मिलनी चाहिए, उन्हें 15 वर्ष बाद भी पहली पदोन्नति नहीं मिली।
डीओपीटी के नियमों के अनुसार हर 5 वर्ष में कैडर रिव्यू अनिवार्य है, लेकिन अर्धसैनिक बलों में यह प्रक्रिया वर्षों से रुकी हुई है।
🔹 न्यायालय में बहस के दौरान अहम टिप्पणियाँ
27 फरवरी 2025 को हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने कहा था कि केंद्रीय बलों में आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति को धीरे-धीरे समाप्त किया जाना चाहिए, ताकि कैडर अधिकारियों को नेतृत्व के अवसर मिल सकें।
उन्होंने यह भी कहा कि जब केंद्र की अन्य “ग्रुप-ए सेवाओं” में 19-20 वर्ष में “सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (SAG)” मिलता है, तो अर्धसैनिक बलों में यह 36 वर्ष तक लगना असमानता दर्शाता है।
🔹 विशेषज्ञों की राय
बीएसएफ के पूर्व एडीजी एस.के. सूद ने कहा कि “इन बलों में लगभग 10 लाख कर्मियों के बीच 20 हजार कैडर अधिकारी हैं, जिनके पास अनुभव और क्षमता दोनों हैं, लेकिन नीति-निर्माण में उनकी भागीदारी बेहद सीमित है। जबकि ये अधिकारी सीमा सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा में अग्रिम पंक्ति में कार्य करते हैं।”
उन्होंने कहा कि “सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी अगर सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह न्यायिक निर्णयों की भावना के विपरीत होगा।”
🔹 आईपीएस प्रतिनियुक्ति पर सवाल
पूर्व सहायक कमांडेंट एवं अधिवक्ता सर्वेश त्रिपाठी के अनुसार,
“2019 में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि CAPF कैडर अधिकारी OGAS के हकदार हैं और आईपीएस की प्रतिनियुक्ति को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए।
आईपीएस अधिकारियों के आने से कैडर अफसरों की पदोन्नति और नेतृत्व के अवसर लगातार बाधित हो रहे हैं।”
🔹 ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी समर्थन
1955 के फोर्स एक्ट से लेकर 1970 के गृह मंत्रालय के दस्तावेजों तक, कई बार यह सिफारिश की गई थी कि केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस अधिकारियों के लिए पद आरक्षित न किए जाएं।
1968 में तत्कालीन डीजी सीआरपीएफ वी.जी. कनेत्कर ने भी कहा था, “मुझे आईपीएस की जरूरत नहीं है, हमारे अपने अफसर नेतृत्व कर सकते हैं।”
लेकिन सरकारों ने इन सिफारिशों को लागू नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप दशकों से कैडर अफसरों को पदोन्नति और निर्णय लेने के अवसरों से वंचित रहना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कैडर अधिकारियों की वर्षों पुरानी लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ है।
अब देखना यह होगा कि क्या सरकार कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए समय-सीमा में OGAS संरचना और कैडर रिव्यू लागू करती है, या यह मामला अन्य लंबित फैसलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाता है।

