CAPF कैडर अफसरों के केस में CJI गवई ने खुद को सुनवाई से किया अलग, अब 17 अक्टूबर को होगी अगली सुनवाई
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (CAPF) के लगभग 20 हजार कैडर अधिकारियों के हितों से जुड़े केस में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई (CJI Gavai) ने खुद को इस केस की सुनवाई से अलग कर लिया। अब यह मामला 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच के समक्ष रखा जा सकता है।
अब सबकी नजर इस बात पर है कि CJI गवई के स्थान पर कौन से न्यायाधीश इस केस की सुनवाई करेंगे। कैडर अधिकारियों को उम्मीद थी कि 8 अक्टूबर को सरकार की रिव्यू पिटीशन खारिज हो जाएगी, लेकिन अब फैसला टल गया है।
🔹 सुप्रीम कोर्ट में पहले कैडर अफसरों की हुई थी जीत
मई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने कैडर अधिकारियों के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। अदालत ने कहा था कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को “संगठित समूह-A सेवा (OGAS)” का दर्जा सही मायने में लागू किया जाए।
न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया था कि यह पैटर्न केवल वित्तीय उन्नयन (NFFU) के लिए नहीं बल्कि सभी सेवा मामलों में लागू होगा। अदालत ने सरकार को छह माह की समय सीमा के भीतर कैडर रिव्यू पूरी करने का आदेश दिया था।
सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि IPS प्रतिनियुक्तियों के कारण कैडर अधिकारी पदोन्नति में पीछे रह जाते हैं और नेतृत्व के अवसर नहीं मिलते। अदालत ने सुझाव दिया कि CAPF में IPS की प्रतिनियुक्तियों को धीरे-धीरे समाप्त किया जाए।
🔹 15 साल में भी पहली पदोन्नति नहीं
मौजूदा समय में BSF और CRPF में 2016 से अब तक कोई कैडर रिव्यू नहीं हुआ है। UPSC से चयनित सहायक कमांडेंट को 15 वर्षों में भी पहली पदोन्नति नहीं मिल पा रही है।
जबकि DoPT के नियम के अनुसार हर 5 वर्ष में कैडर रिव्यू होना चाहिए। यह स्थिति न केवल अधिकारियों के मनोबल को प्रभावित कर रही है बल्कि बलों की कार्यक्षमता पर भी असर डाल रही है।
🔹 फरवरी में हुई थी गहन बहस
27 फरवरी को इस केस पर हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका और उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा था कि CAPF में प्रतिनियुक्तियों को चरणबद्ध तरीके से कम किया जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी टिप्पणी की थी कि केंद्र की अन्य समूह-A सेवाओं में जहां 19–20 वर्ष में सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (SAG) मिल जाता है, वहीं CAPF में यह 36 वर्ष तक लग जाते हैं — जो बेहद असंतुलित है।
🔹 “कैडर अफसरों का योगदान, फिर भी नीति-निर्माण से दूर”
BSF के पूर्व ADG एस.के. सूद के अनुसार, केंद्रीय बलों में कुल दस लाख से अधिक कर्मियों में करीब 20,000 कैडर अधिकारी हैं, लेकिन उनके लिए पदोन्नति के अवसर बहुत सीमित हैं।
उन्होंने कहा, “ये अधिकारी सीमाओं और आंतरिक सुरक्षा दोनों में अग्रिम पंक्ति में रहते हैं, लेकिन नीति-निर्माण के स्तर पर इनकी भागीदारी बेहद कम है।”
🔹 1986 से OGAS की मान्यता, फिर भी लाभ नहीं
सरकार ने 1986 में ही CAPF को OGAS माना था और 2006 के वेतन आयोग ने उन्हें NFFU का समर्थन दिया था। लेकिन इसे लागू नहीं किया गया।
परिणामस्वरूप, हजारों अधिकारी वर्षों से पदोन्नति और वित्तीय लाभों से वंचित हैं। अधिकांश अधिकारी कमांडेंट स्तर से आगे नहीं बढ़ पाते और रिटायर हो जाते हैं।
🔹 आईपीएस प्रतिनियुक्ति विवाद का इतिहास
पूर्व सहायक कमांडेंट एवं अधिवक्ता सर्वेश त्रिपाठी बताते हैं कि 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कैडर अफसरों के पक्ष में निर्णय दिया था, जिसे केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने गई, लेकिन 2019 में SLP खारिज हो गई।
फिर भी सरकार ने IPS प्रतिनियुक्तियों को कम नहीं किया। उन्होंने कहा कि CAPF में पहले आर्मी अफसरों की प्रतिनियुक्ति भी होती थी, लेकिन वह बाद में बंद कर दी गई — अब केवल IPS अधिकारी कमांड संभालते हैं।
🔹 1955 के फोर्स एक्ट में नहीं है आरक्षण का प्रावधान
पूर्व कैडर अफसरों के अनुसार, 1955 के फोर्स एक्ट में IPS के लिए कोई आरक्षण नहीं है। 1970 में ही गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा था कि CAPF में IPS के लिए पद आरक्षित न किए जाएं, लेकिन इसे अनदेखा किया गया।
परिणामस्वरूप, दशकों से कैडर अधिकारी पदोन्नति में पिछड़ते रहे हैं।
🔹 अब उम्मीद सुप्रीम कोर्ट से
कैडर अफसरों को अब भी उम्मीद है कि 17 अक्टूबर की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट उन्हें न्याय दिलाएगा।
वे चाहते हैं कि OGAS फैसला पूरी तरह लागू हो, कैडर रिव्यू नियमित रूप से हो और IPS प्रतिनियुक्तियों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाए, ताकि CAPF अफसर अपने ही बल का नेतृत्व कर सकें।

