BSF ने ड्रोन वारफेयर को बनाया अपने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा,जवानों को मिलेगी ड्रोन और एंटी-ड्रोन ट्रेनिंग
सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने ड्रोन वारफेयर को अब अपने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बना दिया है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह कदम उठाया गया है, जब ड्रोन और लुटेरिंग म्यूनिशन से भारतीय सुरक्षा बलों को चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
बीएसएफ अकादमी के निदेशक शमशेर सिंह ने बताया, “हमने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में बदलाव किया है। अब ड्रोन तकनीक अनिवार्य है। बीएसएफ ने एक ड्रोन स्कूल भी शुरू किया है ताकि आधुनिक युद्ध के लिए स्वदेशी समाधान विकसित किए जा सकें।”
क्या है बीएसएफ का ड्रोन प्रशिक्षण?
- बीएसएफ ने पहला ड्रोन स्क्वाड्रन और ड्रोन वारफेयर स्कूल स्थापित किया है।
- मध्य प्रदेश के टेकनपुर स्थित अकादमी में आरजेआईटी में ड्रोन टेक्नोलॉजी लैब तैयार की गई है।
- पुलिस टेक्नोलॉजी इनोवेशन सेंटर में अधिकारी, स्टार्टअप्स, उद्योग और शोधकर्ता जुड़े हुए हैं।
- यह केंद्र 48 क्षेत्रों पर काम कर रहा है, जिसमें ड्रोन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, निगरानी और मोबिलिटी शामिल हैं।
- पहला बैच 45 कर्मियों का प्रशिक्षण पूरा कर चुका है। इसमें दो नए कोर्स शामिल हैं — ड्रोन कमांडो (जवानों और जूनियर रैंक्स के लिए) और ड्रोन वॉरियर्स (अधिकारियों के लिए)।
- हर साल लगभग 500 कर्मियों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है।
- प्रशिक्षण में थ्योरी, ड्रोन उड़ाने का व्यावहारिक अभ्यास, एंटी-ड्रोन रणनीतियाँ और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शामिल है।
- इसके लिए लगभग 20 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया है।
क्यों अहम है ड्रोन प्रशिक्षण?
हाल के रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिका, चीन, तुर्किये और पाकिस्तान की रणनीतियों से प्रेरित होकर यह पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। ऑपरेशन सिंदूर में सामने आए ड्रोन हमलों ने दिखा दिया कि भविष्य की लड़ाई में यूएवी (UAV) निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा था कि, “ड्रोन का विकास भले ही क्रमिक रहा हो, लेकिन उनका इस्तेमाल युद्ध में क्रांतिकारी साबित हुआ है। कई युद्धों में हमने इसे देखा है।”
बीएसएफ ने आईआईटी और सरकारी संस्थानों के साथ समझौता कर दीर्घकालिक रणनीति बनाने की पहल की है। अधिकारियों का कहना है कि जरूरत पड़ने पर बीएसएफ की ड्रोन यूनिट्स सशस्त्र बलों के साथ मिलकर काम कर सकती हैं।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान साहस दिखाने वाले बीएसएफ के 18 जवानों को वीरता पदक प्रदान किए गए, जिनमें से दो को मरणोपरांत सम्मानित किया गया।

