28 साल बाद न्याय: पत्नी की बीमारी में छुट्टी बढ़ाने पर बर्खास्त BSF कांस्टेबल को हाईकोर्ट ने किया बहाल
चंडीगढ़: करीब 28 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सीमा सुरक्षा बल (BSF) के एक जवान को आखिरकार न्याय मिल गया है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 1997 में बर्खास्त किए गए बीएसएफ के कांस्टेबल सुखविंदर सिंह की सेवा बहाली का आदेश दिया है।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने 8 सितंबर को फैसला सुनाते हुए बर्खास्तगी को असंवैधानिक, प्रक्रिया संबंधी त्रुटिपूर्ण और “हैरान करने वाला अनुपातहीन दंड” करार दिया। अदालत ने न सिर्फ बर्खास्तगी आदेश को रद्द किया बल्कि जवान को सेवा में पुनः बहाल करने के साथ ही बकाया वेतन और सभी अन्य लाभ देने का निर्देश दिया।
📌 मामला क्या है?
सुखविंदर सिंह ने 1992 में बीएसएफ की 6वीं बटालियन ज्वाइन की थी और बाद में उन्हें जम्मू में तैनात किया गया। वर्ष 1996 में उनकी पत्नी की डिलीवरी के दौरान ऑपरेशन हुआ और उनकी तबीयत बिगड़ गई। इस कठिन समय में सिंह ने 1 से 30 जनवरी 1997 तक की छुट्टी ली थी। लेकिन पत्नी की हालत गंभीर होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा और छुट्टी बढ़ाने की आवश्यकता पड़ी।
सिंह का दावा था कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को फोन और पत्र के जरिए छुट्टी बढ़ाने की सूचना दी, लेकिन 31 जनवरी से 14 मई 1997 तक अनुपस्थित रहने को ‘अनधिकृत गैर-हाजिरी’ माना गया। इसके बाद 1 जुलाई 1997 को उन्हें निलंबित किया गया, 15 जुलाई को चार्जशीट दी गई और 11 सितंबर 1997 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
⚖️ कोर्ट की टिप्पणी
- अदालत ने कहा कि पूरी कार्यवाही केवल सिंह के “कबूलनामे” पर आधारित थी, जबकि यह स्वीकारोक्ति दबाव और झूठे आश्वासन के तहत ली गई थी।
- जस्टिस मौदगिल ने कहा, “ऐसे कबूलनामे को सज़ा का आधार बनाना संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन है, जो आत्म-अभियोग से सुरक्षा प्रदान करता है।”
- कोर्ट ने यह भी पाया कि सिंह को जांच रिपोर्ट पर जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए था, लेकिन केवल 12 दिन मिले। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- सजा पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा, “छुट्टी बढ़ाने की वजह से बर्खास्तगी जैसी कठोर सजा देना, अनुशासन बनाए रखने के नाम पर भी न्यायसंगत नहीं है। यह दंड आश्चर्यजनक रूप से अनुपातहीन है।”
केंद्र सरकार की दलील
भारत सरकार की ओर से वरिष्ठ पैनल काउंसल अनीता बल्यान ने तर्क दिया कि लंबी गैर-हाजिरी अनुशासनहीनता और गंभीर कदाचार है, खासकर वर्दीधारी बलों में। लेकिन अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि “अनुशासन और मानवता के बीच संतुलन जरूरी है।”
✅ फैसला
अदालत ने कहा कि यह मामला स्पष्ट रूप से प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन, आत्म-अभियोग के खिलाफ संवैधानिक सुरक्षा और अनुपातहीन सजा से जुड़ा है। इसलिए सिंह की बर्खास्तगी अस्थिर और अवैध है।
अब बीएसएफ कांस्टेबल सुखविंदर सिंह को सेवा में बहाल कर सभी बकाया वेतन और लाभ दिए जाएंगे।