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बिहार चुनाव 2025: क्या राजनीतिक पार्टियाँ ‘अर्द्धसैनिक बल कल्याण बोर्ड गठन’ को अपने घोषणापत्र में देंगी जगह?

देश की सीमाओं से लेकर बर्फीली चोटियों तक, नक्सल प्रभावित इलाकों से लेकर देश के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा तक, बिहार के हजारों बेटे केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों (ITBP, BSF, CRPF, CISF, SSB) में अपनी जान की परवाह किए बिना देश की सेवा कर रहे हैं। इन वीर सपूतों का शौर्य और बलिदान किसी से छिपा नहीं है, लेकिन विडंबना यह है कि अपने गृह राज्य बिहार में इनके और इनके परिवारों की समस्याएं आज भी अनसुनी रह जाती हैं। इसका मुख्य कारण है “अर्द्धसैनिक बल कल्याण बोर्ड” का अब तक गठन न होना।

राज्य में अभी तक अर्धसैनिक बलों के सेवारत और सेवानिवृत्त जवानों तथा उनके आश्रितों के कल्याण के लिए एक भी समर्पित कल्याण बोर्ड का नहीं है । इन परिवारों की चुनौतियां बहुआयामी होती हैं – शहीद जवानों के आश्रितों को उचित सहायता, सेवारत जवानों की पत्नियों/बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा, सेवानिवृत्त जवानों के पुनर्वास, और स्थानीय स्तर पर आने वाली प्रशासनिक व सामाजिक समस्याओं का त्वरित समाधान।

राज्य में वर्तमान में ऐसा कोई एकीकृत तंत्र नहीं है जो इन समस्याओं को गंभीरता से सुने और उनका समाधान सुनिश्चित करे। नतीजतन, कई बार जवानों के परिवार छोटे-मोटे मुद्दों के लिए भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते रहते हैं, और उनकी शिकायतें अक्सर ठंडे बस्ते में चली जाती हैं।

इस स्थिति में अर्द्धसैनिक बल कल्याण बोर्ड का गठन न केवल जरूरी है, बल्कि इसे चुनावी विमर्श में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। यह बोर्ड जवानों और उनके परिवारों के स्वास्थ्य, शिक्षा, पुनर्वास और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों का समन्वय कर सकता है।

अब सवाल यह है: क्या राजनीतिक दल इसे अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल करेंगे?
यदि इसे प्राथमिकता दी जाती है, तो यह केवल प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि उन परिवारों के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी का प्रतीक बनेगा, जिन्होंने अपने सदस्य को देश की सेवा में समर्पित किया है।


चुनावी मंच पर यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन इसे गंभीर मुद्दा मानता है और कौन इसे अनदेखा कर देता है।

बिहार में अर्धसैनिक बलों से जुड़े परिवारों की संख्या लाखों में है, और इनका संगठित वोट बैंक किसी भी राजनीतिक दल के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यह सिर्फ एक कल्याणकारी मांग नहीं, बल्कि उन लाखों परिवारों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का प्रतीक है, जिनके सदस्य देश के लिए सब कुछ न्यौछावर कर रहे हैं।

अब देखना यह होगा कि बिहार के राजनीतिक दल इस संवेदनशील और महत्वपूर्ण मांग पर क्या रुख अपनाते हैं। क्या वे देश के इन सच्चे प्रहरियों के परिवारों के लिए आगे आएंगे, या उनकी मांगें एक बार फिर अनसुनी रह जाएंगी?

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