CRPF जलवाहक ने जमा किया फर्जी मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, दिल्ली हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी बरकरार रखी
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के एक जलवाहक को फर्जी मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र जमा करने के आरोप में दी गई बर्खास्तगी की सजा को बरकरार रखा है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि सुरक्षा बलों में कोई भी भूमिका मामूली नहीं होती और ईमानदारी तथा भरोसा इन सेवाओं की मूल भावना हैं।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस विमल कुमार यादव की खंडपीठ ने कहा कि “सुरक्षा या पुलिस संगठन में विश्वसनीयता अत्यंत आवश्यक है। एक छोटी सी गलती भी न केवल बल के सदस्यों बल्कि आम नागरिकों और देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है।”
फर्जी प्रमाणपत्र का खुलासा
याचिकाकर्ता को वर्ष 2011 में CRPF में जलवाहक (Water Carrier) के पद पर नियुक्त किया गया था। बाद में शैक्षणिक दस्तावेजों के सत्यापन के दौरान यह पाया गया कि उसका मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट फर्जी था। जांच के बाद वर्ष 2018 में उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
याचिकाकर्ता की दलीलें और अदालत की टिप्पणी
याचिकाकर्ता ने अदालत में दावा किया कि उसका कोई धोखाधड़ी करने का इरादा नहीं था। उसने कहा कि उसकी मूल मार्कशीट खो गई थी और उसके एक रिश्तेदार ने गलती से एक डुप्लिकेट मार्कशीट दिला दी, जिसमें केवल रोल नंबर और अंकों में थोड़ा अंतर था।
हालांकि, अदालत ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि “अंकपत्र में दिए गए अंक किसी भी प्रमाणपत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। कोई व्यक्ति अपने अंक भूल नहीं सकता। यदि दस्तावेज़ खो गया था, तो उसे अधिकारियों को यह जानकारी देनी चाहिए थी, न कि गलत प्रमाणपत्र जमा करना चाहिए था।”
कानूनी आधार और निर्णय
CRPF ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के 1993 के कार्यालय ज्ञापन और केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1965 के नियम 14 का हवाला देते हुए तर्क दिया कि नियुक्ति के समय गलत जानकारी देने वाले कर्मचारी को सेवा में नहीं रखा जा सकता।
अदालत ने माना कि यह मामला किसी सद्भावनापूर्ण गलती का नहीं, बल्कि जानबूझकर की गई गलत प्रस्तुति का है। खंडपीठ ने कहा, “रक्षा और सुरक्षा सेवाओं में नियोक्ता और कर्मचारी के बीच विश्वास की नींव पर ही व्यवस्था टिकी होती है। जब वही विश्वास टूट जाए, तो सेवा में बने रहना उचित नहीं।”
अंततः, दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए CRPF द्वारा की गई बर्खास्तगी की कार्रवाई को सही ठहराया।
मामले का शीर्षक: Amit Kumar v. Union of India & Ors
