जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने BSF कॉन्स्टेबल की बर्खास्तगी को सही ठहराया,कमांडेंट की कार्रवाई को बताया वैध और न्यायसंगत
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) के कॉन्स्टेबल मोहम्मद शफी खान की बर्खास्तगी को सही ठहराते हुए कहा कि यदि कोई नोटिस सही पते पर पंजीकृत डाक (Registered Post) से भेजा गया है, तो उसे विधि अनुसार “सेवा प्राप्त” माना जाएगा। ऐसे मामलों में यह साबित करने की जिम्मेदारी प्राप्तकर्ता (addressee) पर होती है कि उसे नोटिस नहीं मिला।
यह फैसला न्यायमूर्ति सिंधु शर्मा और न्यायमूर्ति शाहज़ाद अज़ीम (लेखक न्यायाधीश) की खंडपीठ ने सुनाया, जिसने सिंगल बेंच द्वारा दी गई उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें खान की बर्खास्तगी को अवैध बताया गया था।
🔹 मामले की पृष्ठभूमि
मामला BSF की 193 बटालियन के कॉन्स्टेबल मोहम्मद शफी खान से जुड़ा है, जिन्होंने एक दिन की कैज़ुअल लीव पर जाने के बाद ड्यूटी पर वापसी नहीं की। कई बार नोटिस, शोकॉज और अन्य संचार भेजे जाने के बावजूद उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
बीएसएफ अधिनियम 1968 की धारा 62 के तहत कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी बुलाई गई, और कई अवसरों के बाद भी जवाब न मिलने पर कमांडेंट ने धारा 11(2) और नियम 177 के तहत उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया।
खान ने इस बर्खास्तगी को संविधान के अनुच्छेद 311 और “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों” का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी थी।
🔹 हाईकोर्ट की टिप्पणियां
खंडपीठ ने पाया कि बीएसएफ अधिकारियों ने सभी वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया और कॉन्स्टेबल को पर्याप्त अवसर दिए गए।
कोर्ट ने कहा कि
“जब कोई नोटिस सही पते पर पंजीकृत डाक से भेजा जाता है और वह लौटकर नहीं आता, तो यह मान लिया जाता है कि नोटिस की सेवा पूरी हो गई है।”
जस्टिस अज़ीम ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत गैर-सेवा की धारणा केवल इसलिए नहीं बना सकती कि रसीद प्रस्तुत नहीं की गई, खासकर जब रिकॉर्ड से पता चलता हो कि नोटिस भेजे गए थे और प्राप्तकर्ता ने कुछ पत्रों की प्राप्ति खुद स्वीकार की है।
🔹 कमांडेंट के स्वतंत्र अधिकार
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि बीएसएफ अधिनियम की धारा 11(2) के तहत कमांडेंट को अपने अधीनस्थ कर्मियों को बर्खास्त करने का स्वतंत्र अधिकार है, भले ही उन्हें सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट में ट्रायल न किया गया हो।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले “श्री गौरण्ग चक्रवर्ती बनाम त्रिपुरा राज्य (AIR 1989 SC 1321)” का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि यदि किसी कर्मी को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया है और उसने उसका उपयोग नहीं किया, तो यह “प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन” नहीं कहा जा सकता।
🔹 ‘अस्वच्छ हाथों’ से न्याय नहीं
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने तथ्यों को छिपाकर अदालत को गुमराह करने की कोशिश की, जिससे वह “स्वच्छ हाथों” से न्याय मांगने के योग्य नहीं रहा।
बेंच ने टिप्पणी की —
“एक ऐसा व्यक्ति जो न्यायालय को भ्रमित करता है, वह किसी भी राहत का हकदार नहीं है।”
अंततः हाईकोर्ट ने BSF के बर्खास्तगी आदेश को वैध, कानूनी और न्यायसंगत ठहराया।
खंडपीठ ने कहा कि खान का आचरण यह दर्शाता है कि वह जानबूझकर सेवा से बच रहे थे और कानून की प्रक्रिया से दूर भाग रहे थे।
📌 मामले का नाम: Union of India vs Mohammad Shafi Khan
📅 निर्णय की तारीख: अक्टूबर 2025
⚖️ पीठ: न्यायमूर्ति सिंधु शर्मा और न्यायमूर्ति शाहज़ाद अज़ीम

