नक्सल: समाप्ति की डेडलाइन नजदीक — ‘सीजफायर’ के बीच आईईडी हुआ अंतिम हथियार, सुरक्षा बल सतर्क
केंद्र सरकार द्वारा 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को देश से खत्म करने के लक्ष्य के बीच नक्सली संगठन हथियारबंद संघर्ष को आंशिक रूप से विराम देकर नये तरीकों का सहारा ले रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, अब नक्सलियों ने इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) को अपनी अंतिम चाल बना लिया है और कदम-कदम पर आईईडी लगाकर सुरक्षा बलों को निशाना बनाया जा रहा है।
सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय ने 15 अगस्त को एक अपील जारी कर शांति वार्ता और अस्थायी विराम की बात कही थी। हालांकि इस अपील के बाद भी सुरक्षा बलों ने अपने अभियान और तेज कर दिए हैं। केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), आईबी व डीआरजी के विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि नक्सल प्रभावित राज्यों — छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना व ओडिशा समेत — में सुरक्षा बलों की पकड़ लगातार मजबूत हो रही है और शीर्ष कमांडरों के ठिकानों पर हमले जारी हैं। कई नक्सलियों ने सरेंडर करना शुरू कर दिया है, वहीं बाकी बची लड़ाकू तुकड़ियों ने सीधे मुठभेड़ों से बचते हुए जंगलों में रुकने के स्थानों के आसपास व आवाजाही वाले मार्गों पर आईईडी रख दिए हैं।
सुरक्षा बलों के साथ तैनात अधिकारियों के मुताबिक़, कई इलाकों में 5-5 किलोमीटर के अंतराल पर फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (एफओबी) स्थापित किए जा रहे हैं ताकि दलों की पहुंच और चुस्ती बनी रहे। बीजापुर और तेलंगाना बॉर्डर के करेगुट्टा जैसे क्षेत्रों में विस्फोटक उपकरणों की संख्या में इजाफा देखा गया है। नक्सलियों द्वारा प्रयुक्त आईईडी प्रेशर-टाइप, रिमोट-कंट्रोल, टाइमर, मैग्नेटिक ट्रिगर व ट्रिप-वायर जैसे तरीकों से संचालित होते हैं और इन्हें टिफिन-बम, कुकर-बम जैसी कोंटेनर आधारित डिवाइस के रूप में भी तैनात किया जा रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार उच्च गुणवत्ता वाले विस्फोटक सीमित उपलब्ध होने के बावजूद पोटाशियम, चारकोल, कुछ नाइट्रेट, ऑर्गेनिक सल्फाइड और ब्लैक पाउडर जैसे पदार्थों से भी काफी हद तक प्रभावी आईईडी तैयार किए जा रहे हैं। कुछ इलाकों में माइनिंग व निर्माण कार्यों में प्रयुक्त जिलेटिन स्टिक्स जैसे उपकरणों तक दुरुपयोग की आशंका बताई जा रही है। नक्सली डेटोनेटर व पावर के लिए ड्राई बैटरी सेल का इस्तेमाल करते हैं तथा 1.95 डेस्क टाइमर जैसे उपकरणों का भी उल्लेख मिलता है — जिससे टाइमिंग और सटीकता एक बड़ा जोखिम बन जाती है।
सीआरपीएफ, कोबरा व डीआरजी के जवानों ने आईईडी खतरे का मुकाबला करने के लिए तकनीकी उपकरणों और स्निफर डॉग्स का इस्तेमाल तेज कर दिया है। किसी भी मार्ग पर दलों की आवाजाही से पहले उसे सेनिटाइज किया जाता है, रोड-ओपेनिंग पार्टी भेजी जाती है, तथा डॉग व तकनीकी सिग्नल मिलने के बाद आगे कदम बढ़ाए जाते हैं। वहीं जवानों ने वाहन में होने के बजाय बाइक पर गश्त को प्राथमिकता दी ताकि आईईडी के प्रभाव को कम किया जा सके।
सिक्योरिटी रिश्तेदार सूत्रों का कहना है कि नक्सलियों की सप्लाई चैन काटने, ठिकानों के ध्वस्त होने और नई भर्ती में गिरावट के कारण उनका दायरा सिकुड़ रहा है। साथ ही कई हिस्सों में 200 से अधिक नए कैंप और फॉरवर्ड बेस स्थापित किए जा चुके हैं, जिससे वे इलाके पर नियंत्रण और बढ़ रहा है। बावजूद इसके, आईईडी विस्फोट सुरक्षा बलों के लिए अभी भी सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है क्योंकि इनकी छिपाई हुई प्रकृति और मौके पर दूर बैठे लोगों द्वारा संचालित होने की विशेषता उन्हें खतरनाक बनाती है।
सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की प्राथमिकता अब आईईडी निवारण तकनीक, लोकल इंटेलिजेंस, सप्लाई लाइन कटौती और सशक्त भू-निगरानी को और प्रभावी बनाकर अंतिम फेज़ में नक्सलियों को समाप्ति की डेडलाइन तक बेदखल करना है। सुरक्षा बलों के लिये जरूरी है कि तकनीक, प्रशिक्षण और लोकल समन्वय को और मजबूती दी जाए ताकि आईईडी से होने वाले जानी व सामरिक नुकसान को न्यूनतम किया जा सके।

