पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने BSF जवानों की अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश किया रद्द
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) के दो जवानों को जबरन सेवानिवृत्ति देने के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि समय की पाबंदी से जुड़ी मामूली चूक के आधार पर इतनी कड़ी कार्रवाई करना असमानुपातिक है, खासकर तब जब जवानों का सेवा रिकॉर्ड संतोषजनक रहा हो।
यह मामला बीएसएफ के जवान श्रीकांत गौड़ा पाटिल (कर्नाटक) और चौधरी दशरथ भाई (गुजरात) से जुड़ा है। दोनों को 20 नवंबर 2014 को बीएसएफ नियम 1969 के नियम 26 के तहत ‘अनुपयुक्तता’ के आधार पर जबरन रिटायर कर दिया गया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए दोनों जवानों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि उनका सेवा रिकॉर्ड बिल्कुल साफ-सुथरा है। पाटिल की पिछली पांच साल की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में चार बार ‘बहुत अच्छा’ और एक बार ‘अच्छा’ ग्रेड मिला था। वहीं, चौधरी दशरथ भाई को दो बार ‘बहुत अच्छा’ और तीन बार ‘अच्छा’ दर्जा प्राप्त हुआ था।
दोनों जवानों पर लगाए गए आरोप, जैसे छुट्टी से देर से लौटना या अल्प अवधि की अनुपस्थिति, मामूली प्रकृति के थे। जस्टिस विनोद एस भारद्वाज की खंडपीठ ने पाया कि बीएसएफ अधिकारियों ने अपनी ही प्रशासनिक गाइडलाइन का पालन नहीं किया। गाइडलाइन के अनुसार, किसी जवान को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने से पहले उसके सेवा रिकॉर्ड का कम से कम तीन से चार वर्षों की अवधि में समग्र मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल तीन या अधिक प्रतिकूल प्रविष्टि मिलना सेवानिवृत्ति का आधार नहीं बन सकता। यह केवल मूल्यांकन की प्रक्रिया शुरू करने का कारण हो सकता है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का प्रदर्शन लगातार खराब नहीं था और उनमें सुधार की संभावनाएं भी शेष थीं।
इस आधार पर हाईकोर्ट ने 2014 का सेवानिवृत्ति आदेश रद्द कर दिया। अदालत ने मामला संबंधित कमांडिंग ऑफिसर के पास भेजते हुए चार महीने के भीतर गाइडलाइन के अनुरूप नया आदेश पारित करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही दोनों जवानों को 1 अक्टूबर 2025 को अपनी-अपनी बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर के सामने पेश होने के आदेश दिए गए हैं।